JAT SAMAJवह होता है जो सुसंगठित व एकता-समता के संवेदनात्मक सूत्र से बंधा हो। सुविचारों वाला तथा प्रगतिशील व उदार दृष्टिकोणवाला हो। जिसमें समयानुकूल सुपरिवर्तन करने की क्षमता हो तथा रूढवाद, जडता व अन्ध परम्पराओं एवम् विश्वासों से मुक्त हो। सामाजिक उत्थान व विकास के लिए प्रतिबद्ध होने के साथ-साथ भेदभाव, ऊँच-नीच की संकीर्णताओं से विमुक्त हो स्वार्थान्धता, स्वकेन्द्रीयता से स्वतन्त्र व अपनी भावी-पीढयों के उज्ज्वल भविष्य के प्रति जागरूक एवम् सक्रिय हो। जिस समाज का हर जन समाज के लिए समर्पित व िहत चिन्तक हो तथा अपने समाज को श्रेष्ट बनाने के लिए कटिबद्ध हो। बालक-युवा, नारी-वृद्ध के प्रति संवेदनशील व कल्याणकारी हो तथा समाज को हर क्षेत्र में आगे बढाने की भावना से संकल्पित हो। समाज के आर्थिक उत्थान के प्रति चिन्तनशील व प्रयासरत होते हुए समाज के सदस्यों का हाथ पकड उन्हें ऊँचा उठाने के लिए कार्यरत हो। संक्षेप में समाज के सभी वर्ग पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, संास्कृतिक, शैक्षणिक, व्यवसायिक, प्रशासनिक, राजनीतिक, तकनीकी, वैज्ञानिक, उद्योग व रोजगार आदि जीवनोपयोगी क्षेत्रों में समाज के निरन्तर विकास तथा प्रगति के लिए चिन्तन व चिन्तायुक्त हो ।
ramniwas guru(B.A.,B.ed) |
इस कसौटी पर यदि समाज को कसें तो हमारा समाज काफी पिछडा हुआ नजर आता है। अपने आप को सबमें श्रेष्ठ और सुसंस्कृत तथा उत्तम आचार-विचार मानने वाला हमारा समाज मोहान्ध स्वार्थान्ध व परम्परान्ध है, भूत-उपासक और स्वप्नजीवी है। हम आचार-विचार-व्यावहारहीन होते हुए भी अपनी श्रेष्ठता व उच्चता का गर्वन-गान करते है। क्या ऐसा करके कोई भी समाज समय के साथ कदम मिला सकता है ? नहीं, उसे अपना आत्म-चिन्तन व आत्म-विश्लेषण करना होगा। आत्म-मंथन से ही अमृत मिल सकता है।
पारिवारिक रूप से हम टूटन-विखण्डन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। आंगन में दीवारें बन रही हैं - व्यक्ति आंगन की बजाय अपने कक्ष का हो रहा है। उसका कक्ष उसका परिवार (मैं, पत्नी, बच्चे) ही उसके लिए सर्वोपरि हैं। स्वार्थ सिकुडता जा रहा है। मुखिया का नियंत्रण घट रहा है - अनुशासन हीनता बढी जा रही है, मर्यादा, आचरण, संस्कार व खान-पान सब दूषित होते जा रहे हैं। परिवार बिखर रहे हैं। यह हमारे घर-घर की कहानी है। इस पत्रिका द्वारा हमारा प्रयास आत्म मंथन करना है, न कि कोई विवाद उत्पन्न करना।
‘‘पीर पर्वत सी हो गई, अब पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा उतरनी चाहिए,
बखेडा खडा करना हमारा मकसद नहीं, मकसद तो यह है कि सूरत बदलनी चाहिए’’
BY:ramniwas choudhary(guru)daikara,jodhpur (B.A,.B.ed)
''क्या जाटों को भारतमाता की जयघोष करनी चाहिए?; जवाब दे!''
प्रश्न न.1-
भारत माता की जो फोटो आप देखते हो वो उसमें साड़ी पहने हुयी हैं और श्रृंगार किये हुए हैं जबकि जाट महिला कभी साड़ी नहीं डालती! वो तो मुख्यत: सूट सलवार ही पहनती है!
प्रश्न न. 2
क्या जाटनियां हमेशा अपने होठों पे लाल लिपस्टिक लगाये रखती हैं जैसी लिपस्टिक हमेशा भारत माता लगाये रखती हैं!
प्रश्न न.3
क्या जाटनियां(हमारी जाटमाता) कभी हाथ में वींणा उठा कर रखती हैं जैसा कि भारतमाता ने उठाई हुयी हैं जो कि केवल कोट्ठो या वेश्यावृति आलयो में ही आजकल वींणा बजाई जाती हैं!
तो और भी बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो स्पष्ट करती हैं कि वो भारत माता हमारी माता नहीं है!
ये सब ब्राह्मणवादी षड़यंत्र हैं ताकि इस भारतमाता के चक्कर में हिन्दू और मुस्लिम जाटों में भेदभाव आये और इनकी एकता खंडित हो जाएँ!
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दुर्भाग्य से देश की कमान उस महिला के पास है जो ठीक से मात्रभाषा (हिंदी ) भी नहीं बोलना जानती. जो ये नहीं जानती की गरीबी क्या होती है ? गरीब खली पेट अपनी राते कैसे गुजरता है. हंसी उन के भाषण सुन कर तब आती है जब वो चुनावी मौसम में अपने महल से बाहर आ पर्ची पढ़ कर विरोधियो पर प्रहार करती है. पता नहीं क्यों वो प्रेस वार्ता में या किसी जनमंच पर सार्वजनिक बहस के लिए सामने नहीं आतीं . जब एक चपरासी के लिए योग्यता निर्धारित है तो नेताओ के लिए क्यों नहीं ?